किसान  (काव्य)

Author: सत्यनारायण लाल

नहीं हुआ है अभी सवेरा
पूरब की लाली पहचान
चिड़ियों के जगने से पहले
खाट छोड़ उठ गया किसान ।

खिला-पिलाकर बैलों को ले
करने चला खेत पर काम
नहीं कोई त्योहार न छुट्टी
उसको नहीं काबी आराम।

गरम-गरम लू चलती सन-सन
धरती जलती तवा समान
तब भी करता काम खेत पर
बिना किए आराम किसान।

बादल गरज रहे गड़-गड़-गड़
बिजली चमक रही चम-चम
मुसलाधार बरसता पानी
ज़रा न रुकता लेता दम।

हाथ पांव ठिठुरते जाते हैं
घर से बाहर निकले कौन
फिर भी आग जला, खेतों की
रखवाली करता है वह मौन।

है किसान को चैन कहाँ, वह
करता रहता हरदम काम
सोचा नहीं कभी भी उसने
घर पर रह करना आराम।

- सत्यनारायण लाल

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