यदि पक्षपात की दृष्टि से न देखा जाये तो उर्दू भी हिंदी का ही एक रूप है। - शिवनंदन सहाय।
 

मत पूछिये क्यों... (काव्य)

Author: शेरजंग गर्ग

मत पूछिये क्यों पाँव में रफ़्तार नहीं है
यह कारवाँ मज़िल का तलबग़ार नहीं है

जेबों में नहीं सिर्फ़ गरेबान में झाँको
यह दर्द का दरबार है, बाज़ार नहीं है।

सुर्ख़ी में छपी है, पढ़ो मीनार की लागत
फुटपाथ की हालत से सरोकार नहीं है

जो आदमी की साफ़ सही शक्ल दिखा दे
वो आईना माहौल को दरकार नहीं है

सब हैं तमाशबीन, लगाये हैं दूरबीन
घर फूँकने को, एक भी तैयार नहीं है।

-शेरजंग गर्ग

 

Back

 
Post Comment
 
 
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश