अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 

जहाँ जाते हैं हम... (काव्य)

Author: उदय प्रताप सिंह

जहाँ जाते हैं हम कोई कहानी छोड़ जाते हैं
ज़रा सा प्यार थोड़ी सी जवानी छोड़ आते हैं

कहानी राम की वन-वासियों पर फ़ख़्र करती है
उसूलों के लिए जो राजधानी छोड़ आते हैं

हमारे मय-कदे का ख़ास ये दस्तूर है वाइज़
यहाँ आए तो बाहर बद-गुमानी छोड़ आते हैं

कहीं पर दिल नहीं मिलता कहीं महफ़िल नहीं मिलती
इसी चक्कर में हम शामें सुहानी छोड़ आते हैं

कभी जब ख़ुद से मिलने की ज़रूरत पेश आती है
सुनहरे ख़्वाब बातें आसमानी छोड़ आते हैं

मोहब्बत में 'उदय' देना न दिल कम-ज़र्फ़ लोगों को
नई की धुन में जो चीज़ें पुरानी छोड़ आते हैं

- उदय प्रताप सिंह

 

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