देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 

रोहित ठाकुर की तीन कविताएं  (काव्य)

Author: रोहित ठाकुर

चलता हुआ आदमी

एक चलता हुआ आदमी
रेलगाड़ी की तरह नहीं रुकता
वह तो बस थक कर रुक जाता है
सड़क पर
और शून्य को ताकता है
सड़क पर थक कर रुका हुआ आदमी
महसूस कर रहा होता है प्यास
वह नाप रहा होता है दूरी
अपने घर का
वह इस संकोच में रुक जाता है
कि किसी से पूछा जा सके
सस्ते दाम वाले होटल का पता।

एक चलता हुआ आदमी
इस लिये भी रूकता है
कि चलते हुए उसका
उखड़ जाता है दम
एक चलता हुआ आदमी
अपने चलने का हिसाब
लगाने के लिए रुकता है
कभी एक चलता हुआ आदमी
रूकता है
एक हाथ के निढ़ाल हो जाने पर
सामान को
दूसरे हाथ से पकड़ने के लिए
एक थक कर रुके हुए
आदमी के पक्ष में
कोई नहीं रुकता
न तो इस गोलार्द्ध पर
न उस गोलार्द्ध पर।

- रोहित ठाकुर


#


शब्द

जब शब्दों का चेहरा उतर आये
जब शब्द बारिश में भीग कर गिला हो जाये
उसे उस मकान में लाना
जहाँ कोई कविता की बात करता हो

शब्द भूख से नहीं मरते
वे सीढ़ियों से गिर कर नहीं मरते
शब्द मरते हैं भय से
शब्दों का मरना ख़तरनाक है
एक दिन हमारे पास प्रतिरोध के लिये शब्द नहीं बचेंगे।

- रोहित ठाकुर

#



नींद

वह बचाना चाहता है
अपनी नींद
तमाम नाकामियों के बाबजूद
नींद से बाहर है गालियाँ
नींद में जो पेड़ है
उसके पत्ते हरे हैं
पीले नहीं
नींद में उसके घाव से
रिसता है शहद
नींद में वह किसी चिड़िया से
पंख उधार लेता है
घर की ओर उड़ता है।

- रोहित ठाकुर
  पटना, बिहार, भारत

ई-मेल: rrtpatna1@gmail.com

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