जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
 

चलो चलें (काव्य)

Author: शशि द्विवेदी

चलो चलें कुछ नया करें,
नयी राह बना दें,
नया चलन चला दें,
कुछ कांटें निकाल दें,
कुछ फूल बिछा दें।।

चलो चलें एक दीप जला दें,
और जो जल रहा दीप
मद्धिम मद्धिम
हथेलियों को जोड़कर,
थोड़ी आड़ दें
और तेज जलने में थोड़ा हाथ बढ़ा दें।।

चलो चलें
जो खो गया विश्वास,
उसे फिर से पा लें,
भर गयी जो आँख आंसुओं से,
उन आंखों को रोशनी
आशा की दिखा दें।।

चलो चलें
भटक रहे जो राही
उन्हें रास्ता बता दें
जो खो चुके उम्मीद
उन्हें विश्वास दिला दें,
और पा लें थोड़ी खुशी भी
कुछ करने की
बहुत कुछ न करके भी..
चलो चलें
उन नन्ही अंगुलियों को पकड़कर...
दौड़कर.... उछलकर....
सबको बता दें
हम क्या हैं ?
चलो चलें
सबको बता दें....
चलो चलें
इस शिक्षण को कामयाब बना दें
चलो चलें ........


- शशि द्विवेदी
प्राथमिक विद्यालय सिंगारपुर
ग़ाज़ीपुर
ई-मेल: dwishashi@gmail.com

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