यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
सर्वश्रेष्ठ उपहार (बाल-साहित्य )  Click to print this content  
Author:जयप्रकाश भारती

विधाता एक दिन बैठे थे। आसपास सेवक खड़े थे। कब कौन सा आदेश मिले और वह पालन करें। अचानक तभी विधाता बोले --"तुम सब पृथ्वी पर जाओ। वहां से मेरे लिए कोई अद्भुत उपहार लाओ। जो सबसे अच्छा उपहार लाएगा, वही मेरा प्रिय सेवक होगा।"

पलक झपकते ही सब सेवक पृथ्वी की ओर चल दिए। कोई कहीं जा पहुंचा। कोई कहीं। वे ढूंढते रहे। अपनी-अपनी समझ से बेशकीमती उपहार लेकर विधाता के पास पहुंचे। अनोखे हीरे-जवाहरात, कीमती धातुओं में तराशी गई मूर्तियां, दुर्लभ फल फूल और भी न जाने क्या-क्या! पर विधाता किसी भी उपहार को पाकर पसंद नहीं हुए। अभी एक सेवक नहीं लौटा था।

अंतिम सेवक आ गया। उसने हाथ जोड़े। फिर झोले में से निकालकर बड़ी-सी एक पुड़िया विधाता को दी। पुड़िया खोली गई तो सब हैरान। विधाता ने कहा--" अरे, तुम यह क्या ले आए, यह तो मिट्टी...। !

सेवक बोला-- " भगवान क्षमा करें। यह मिट्टी ही है। किसान इसी मिट्टी में बीज डालता है। इसी में लहलहाती फसलें उगती हैं। उससे मनुष्य और पशु पेट भरते हैं। पृथ्वी पर रहने वाले किसी माटी के लिए हँसते-हँसते प्राण भी दे देते हैं।"

विधाता मुसकराए। उन्होंने मिट्टी को माथे से लगाया। फिर बोले--" सचमुच तुम तुम्हारा उपहार सर्वश्रेष्ठ है।"

अपनी माटी अपनी ही होती है। हम इसको प्यार करना और माथे पर लगाना सीखें।

-जयप्रकाश भारती

 

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