अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
बतूता का जूता  (बाल-साहित्य )  Click to print this content  
Author:सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

इब्न बतूता पहन के जूता
निकल पड़े तूफान में
थोड़ी हवा नाक में घुस गई
घुस गई थोड़ी कान में।

कभी नाक को कभी कान को
मलते इब्न बतूता
इसी बीच में निकल पड़ा
उनके पैरों का जूता।

उड़ते उड़ते जूता उनका
जा पहुंचा जापान में
इब्न बतूता खड़े रह गये
मोची की दुकान में।

-सर्वेश्वरदयाल सक्सेना

 

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