भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा हिंदी है। - नलिनविलोचन शर्मा।
हिंदी को आपका साथ चाहिए पर... (संपादकीय)  Click to print this content  
Author:रोहित कुमार हैप्पी

हर वर्ष हम 14 सितंबर को देश-विदेश में हिंदी-दिवस व हिंदी पखवाड़ा जैसे समारोहों का आयोजन करते हैं। निःसंदेह ऐसे आयोजनों के लिए निःस्वार्थ भाव की परम आवश्यकता है। हिंदी को भाषणबाजों और स्वयंभू नेताओं की नहीं बल्कि सिपाहियों की जरूरत है।

इस संदर्भ में कबीर जैसे अलबेले संत कवि का यह कथन 'जो घर फूँके आपणा सो चले हमारे साथ' अपने निजी स्वार्थ छोड़ कर निःस्वार्थ बनने की प्रेरणा देता है।

आप स्वयं से प्रश्न करे कि वास्तव में आप अपनी भाषा के लिए क्या कर रहे हैं? हम हिंदी की दुहाई तो बहुत देते हैं पर हिंदी को जीते नहीं! जरा विचार करें कि जब कभी भी कहीं हस्ताक्षर करने की आवश्यकता आन पड़ी तो आपने कितनी बार हिंदी में हस्ताक्षर किए हैं?  आपके बच्चे किसी भी माध्यम से पढ़ते हों पर हिंदी में उनके अंक कितने आ रहे हैं?

हिंदी को कबीर, प्रेमचंद और निराला चाहिए। भाषण, नारों और प्रस्ताव पारित करने से 'हिंदी' का कोई हित नहीं हुआ और न होगा।

- रोहित कुमार हैप्पी

 

 

 

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