अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
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Author: चितरंजन 'भारती'

एक ट्रेन में चार यात्री यात्रा कर रहे थे । उनमें एक बंगाली, एक तमिल, एक एंग्लो-इंडियन तथा एक हिंदी भाषी था । वे लोग अपनी- अपनी भाषा पर बात कर रहे थे ।

बंगाली महोदय बोले, '' बांग्ला सबसे मीठी भाषा है । इसने भारतीय साहित्य को अत्यंत उच्चकोटि के साहित्य से समृद्ध किया है । ''

तमिल- भाषी महोदय बोले, ''तमिल भाषा बहुत प्राचीन है । इसका साहित्य बहुत
उच्चकोटि का है । इसका प्रादुभाव तब हुआ था, जब आर्य-भाषा निम्न स्तर में थी ।''

एंग्लो-इंडियन महोदय भला कैसे चुप रहते, वह बोले, ''अंग्रेज़ी सबसे अच्छी, सबसे
सरल भाषा है । यह लगभग पूरे विश्व में बोली एवं जानी जाती है । इसका साहित्य अत्यंत समृद्ध है । इसका दूसरी भाषाओं से क्या मुकाबला! ''

अब चौथे यात्री की बारी थी । वह किसी हिंदी-भाषी क्षेत्र के ग्रामीण रहे होंगे, बोले, ''आप लोगों की बातें सही हैं, मगर आप लोग बातें तो हिंदी में कर रहे हैं!'' बाकी तीनों एक-दूसरे का मुंह देखने लगे ।

- चितरंजन 'भारती'

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