अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
नीति के दोहे (काव्य)  Click to print this content  
Author:कबीर, तुलसी व रहीम

कबीर के नीति दोहे

साई इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भूखा जाय ॥


जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान ॥


निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाय ।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ॥

- कबीरदास

 

 

तुलसीदास के नीति दोहे


मुखिया मुख सौं चाहिए, खान-पान को एक ।
पालै पोसै सकल अंग, तुलसी सहित विवेक |

आवत ही हर्ष नहीं, नैनन नहीं सनेह ।
तुलसी तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह ।

तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर ।
बसीकरन इक मंत्र है, तज दे बचन कठोर II

- तुलसीदास

 

रहीम के नीति दोहे


तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहिं न पान |
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहिं सुजान ।

रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय |
सुनि इटलैहैं लोग सब, बाँट न लैहैं कोय ।

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग ।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग ।

- रहीम

 

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