यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
कबूतर का घोंसला (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author:अजीत मधुकर

कबूतर के अतिरिक प्रत्येक पक्षी का घोंसला होता है, जिसको वास्तव में घोंसला कहा जा सकता है । किन्तु कबूतर का घोंसला हमेशा बेढंगे तरीके से बना होता है, जिसमें से कभी भी अंडे गिर सकते हैं।

परन्तु इसका कारण क्या है?

इसकी एक रोचक कहानी है।

बहुत पुराने समय की बात है। उस समय कबूतर अपना घोंसला नहीं बनाया करता था । समय आने पर उसकी साथिन ज़मीन पर धीरे से सटकर अंडे दे देती थी ।

एक दिन एक चालाक लोमड़ी अाँख बचाकर सारे अंडे खा गयी। कबूतर और कबूतरी का दिल टूक-टूक हो गया। कबूतर आकाश में उड़ाने भरता, झाड़ियों की कोमल टहनियों पर बैठकर निश्वास लेता । वह सिसक-सिसककर कहता, छह अंडे थे, अब एक भी नहीं बचा । लोमड़ी मेरे सब अंडों की चुराकर ले गयी ।

कई दिनों तक कबूतर इस घटना पर शोक मनाता रहा । अन्त में उसने घोंसला बनाने का फ़ैसला किया। उसने कुछ तिनके इकट्ठे किये। तिनके इकट्टे करने पर उसे महसूस हुआ कि वह यह तो जानता ही नहीं कि घोंसला कैसे बनाया जाता है। आख़िर उसने घोंसला बनाना सीखने के लिए सारे जंगल के पंछियों को आमन्त्रित किया।

पंछी इकट्ठा हो उसका घोंसला बनाने और उसे सिखाने लगे । परन्तु अभी पंछियों ने कुछ तिनके ही जमाये थे कि कबूतर ने उनको रोक दिया । कहा-मुझे पता है कि घोंसला किस तरह बनाया जाता है । वह जोर से चिल्लाया--मैं अपने-आप बना सकता हूँ।


कोई स्वयं अपना काम कर सकता है, तो अन्य कोई अपने को कष्ट दे ? पंछी तिनके पटककर उड़ गये ।

कबूतर ने एक तिनका एक टहनी पर रखा, दूसरा दूसरी टहनी पर, इस तरह दरख़्त की हर शाख पर उसने कोशिश की, कई बार कोशिश की, परन्तु वह घोंसला न बना सका ।

तो अब क्या किया जाये ?

उसने फिर सब पंछियों को बुलाया और घोंसला बनाना सिखा देने की मिन्नत की । वह-सब उड़कर आ पहुँचे और उन्होंने अपना काम शुरू कर दिया। लेकिन ज्योंही उन्होंने मिलकर घोंसले का आधा हिस्सा पूरा किया कि कबूतर फिर चिल्ला उठा-मैं जानता हूँ, यह कैसे बनता है। मैं खुद बना सकता हूँ।

-अच्छा, तुम खुद बना सकते हो, तो बना लो। हमें नाहक क्यों परेशान करते हो ? पंछिओं ने कहा और वहाँ से उड़ गये ।

कबूतर अपने काम में जुट गया। उसने एक तिनका इधर रखा, एक उधर । परन्तु उससे कुछ भी बन ही न पा रहा था | उसने पंछियों को तीसरी बार बुलाया, परन्तु इस बार वे नहीं आये ।

जो यह सोचता-समझता हो कि वह सब-कुछ समझता है, तो उसको कुछ सिखाने से क्या लाभ !

यही कारण है कि कबूतर का घोंसला आज तक बेढंगे तरीके से बना चला आ रहा है।

प्रेषक: अजीत मधुकर

 

 

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