प्रत्येक नगर प्रत्येक मोहल्ले में और प्रत्येक गाँव में एक पुस्तकालय होने की आवश्यकता है। - (राजा) कीर्त्यानंद सिंह।
कैसे बने रामचंद्र द्विवेदी कवि प्रदीप? (विविध)  Click to print this content  
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी'

संयोगवश रामचंद्र द्विवेदी (कवि प्रदीप) को एक कवि सम्मेलन में जाने का अवसर मिला जिसके लिए उन्हें बंबई आना पड़ा। वहाँ पर उनका परिचय बांबे टॉकीज़ में नौकरी करने वाले एक व्यक्ति से हुआ। वह  रामचंद्र द्विवेदी के कविता पाठ से प्रभावित हुआ तो उसने इस बारे में हिमांशु राय को बताया। उसके बाद हिमांशु राय ने आपको बुलावा भेजा।  वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने 200 रुपये प्रतिमाह की नौकरी दे दी। कवि प्रदीप ने यह बात स्वयं बीबीसी के एक साक्षात्कार में बताई थी।

हिमांशु राय का ही सुझाव था कि रामचंद्र द्विवेदी अपना नाम बदल लें।  उन्होंने कहा कि यह रेलगाड़ी जैसा लंबा नाम ठीक नहीं है, तभी से रामचंद्र द्विवेदी ने अपना नाम प्रदीप रख लिया।


प्रदीप से 'कवि प्रदीप' बनने की कहानी

यह भी एक रोचक कहानी है। उन दिनों अभिनेता प्रदीप कुमार भी काफी प्रसिद्ध थे।  अब फिल्म नगरी में दो प्रदीप हो गये थे एक कवि और दूसरा अभिनेता।  दोनों का नाम प्रदीपो होने से डाकिया प्राय: डाक देने में गलती कर बैठता था।  एक की डाक दूसरे को जा पहुंचती थी। बड़ी दुविधा पैदा हो गई थी।  इसी दुविधा को दूर करने के लिए अब प्रदीप अपना नाम 'कवि प्रदीप' लिखने लगे थे। अब चिट्ठियां सही जगह पहुंचें लगी थीं।

Pradeep Vs Pradeep Kumar

इस बात की पुष्टि करते हुए माधुरी के पूर्व संपादक अरविंद कुमार कहते हैं, "स्टूडियो में दो प्रदीप थे - एक अभिनेता, दूसरे कवि। उन की डाक आपस में बँट जाती थी। बस, प्रदीप जी के नाम से पहले कवि लगाया जाने लगा।"

 

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