देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
मुंशी प्रेमचंद - कलम का सिपाही (संपादकीय)  Click to print this content  
Author:रोहित कुमार 'हैप्पी'

प्रेमचन्द का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस शहर से चार मील दूर लमही गाँव में हुआ था। प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। केवल तेरह वर्ष की आयु में ही प्रेमचन्द ने लिखना आरंभ कर दिया था। आरम्भ में आपने कुछ नाटक लिखे फिर बाद में उर्दू में उपन्यास लिखना आरंभ किया। इस तरह आपका साहित्यिक सफर शुरु हुआ जो जीवन भर चलता रहा। प्रेमचंद को यूं तो उपन्यास-सम्राट कहा जाता है किंतु उन्हें कहानी-सम्राट कह देना भी पूर्णतया उचित होगा। प्रेमचंद की कहानियां जितनी लोकप्रिय हैं शायद ही किसी अन्य की हों!

प्रेमचंद' नाम रखने से पहले, सरकारी नौकरी करते हुए वे अपनी रचनाएं 'नवाब राय' के रूप में प्रकाशित करवाते थे, लेकिन जब सरकार ने उनका पहला कहानी-संग्रह, 'सोज़े वतन' जब्त किया, तब 'ज़माना' के संपादक मुंशी दयानरायन निगम की सलाह पर आपने अपना नाम परिवर्तित कर 'प्रेमचंद' रख लिया। सोजे-वतन के बाद आपकी सभी रचनाएं प्रेमचंद के नाम से ही प्रकाशित हुईं। अब धनपतराय/नवाबराय 'प्रेमचंद' के नाम से लिखने लगे और कालांतर में यही नाम प्रसिद्ध हुआ।

प्रेमचंद के लिए साहित्य व देश सर्वोपरि थे। पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी को लिखे एक पत्र में प्रेमचंद कहते हैं:

"हमारी और कोई इच्छा नहीं है। इस समय यही अभिलाषा है कि स्वराज की लड़ाई में हमें जीतना चाहिए। मैं प्रसिद्धि या सौभाग्य की लालसा के पीछे नहीं हूं। मैं किसी भी प्रकार से जिंदगी गुजार सकता हूं।

मुझे कार और बंगले की कामना नहीं है लेकिन मैं तीन-चार अच्छी पुस्तकें लिखना चाहता हूं, जिनमें स्वराज प्राप्ति की इच्छा का प्रतिपादन हो सके। मैं आलसी नहीं बन सकता। मैं साहित्य और अपने देश के लिए कुछ करने की आशा रखता हूं।"

हिंदी साहित्य ने कितने रचनाकार दिए किंतु जितना याद प्रेमचंद को किया जाता है और किसी को नहीं। उनका साहित्य दशकों बाद भी प्रासांगिक है, यही प्रेमचंद के साहित्य का मुख्य गुण है। प्रेमचंद समय की नब्ज को ख़ूब पढ़ना जानते थे।

प्रेमचंद ने आम आदमी तक पहुंचने की मंशा से 1934 में अजंता सिनेटोन फिल्म कंपनी से समझौता करके फिल्मी लेखन आरम्भ किया औेर इसके लिए वे बम्बई जा पहुंचे। उन्होंने 'शेर दिल औरत' और 'मिल मजदूर' दो कहानियां लिखीं। 'सेवा सदन' को भी पर्दे पर उतारा गया लेकिन प्रेमचंद मूलतः नि:स्वार्थी व्यक्ति थे। और फिल्म निर्माताओं का मुख्य उद्देश्य जनता का पैसा लूटना था व उनका यह ध्येय नहीं था कि वे जनजीवन में परिवर्तन करें। इसी कारण से शीघ्र ही प्रेमचंद का सिनेजगत से मोहभंग हो गया और वे 8 हजार रुपए वार्षिक आय को तिलांजलि देकर बम्बई से काशी आ गए।

प्रेमचंद का अधिकतर समय वाराणसी और लखनऊ में ही व्यतीत हुआ, जहां उन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया और अपना साहित्य-सृजन करते रहे। 8 अक्टूबर, 1936 को बीमारी के बाद उनका देहावसान हो  गया।  

 भारत-दर्शन का यह अंक प्रेमचंद पर केंद्रित है यथा प्रेमचंद को प्रमुखता से प्रकाशित किया गया है।  इस अंक में प्रेमचंद की कहानियां, लघुकथाएँ, आलेख, संस्मरण व प्रेमचंद पर अन्य विद्वानों की राय आपको कैसी लगी, अवश्य बताएं। 

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