अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
नये साल का पृष्ठ (काव्य)  Click to print this content  
Author:शिवशंकर वशिष्ठ

एक साल कम हुआ और इस जीवन का,
नये साल का पृष्ठ खोलने वाले सुन!
छोटी-सी है जान बबाल सैकड़ों हैं,
छुटकारे का आँख खोलकर रस्ता चुन!

कितनी ही अंजान समस्याओं में तू!
उलझा है इस तरह सितारों से नभ ज्यों,
अपने आप खाइयाँ निर्मित कर तो दीं
किन्तु पार करने में आशंकित अब क्यों?

बुद्धि मिली थी तुझे ज्ञान के परिचय को,
हृदय मिला था प्रीति रीति अपनाने को,
गीत मिला था तुझे जिन्दगी का पगले!
साँसों के पावन सितार पर गाने को।

तूने गाया गीत न स्वर झंकार हुई
तारों की खूंटी में ऐंठन पड़ी रही,
मदहोशी में तुझे न इतना ध्यान रहा
नश्वर स्वर में कहाँ अहम् की कड़ी रही।

लापरवाही से नासमझी पनप रही
चेतावनी समय अब तुझको देता है,
जिस कर से कसता है ढीले तारों को
कहीं उसी से पड़े न पछताना सिर धुन!
एक साल कम हुआ और इस जीवन का,
नये साल का पृष्ठ खोलनेवाले सुन!
छोटी-सी है जान बवाल सैंकड़ों हैं
छुटकारे का आँख खोलकर रस्ता चुन!

मन मस्तिष्क मिलाकर अपना देख जरा,
शेष रहेगी नहीं कहीं भी तो उलझन,
वर्षों से जो गाँठ पड़ी है दोनों में
हो जायेगी दूर समय की बन सुलझन,

फिर जो धूम उठेगी तेरी साँसों से
आलोकित उससे हो जायेगा त्रिभुवन,
तार-तार में मधु की धार बहेगी जो
पुलकित हो जायेंगे उससे शुभ जन-मन,

नश्वर स्वर का राग अनश्वर बन करके
तेरी अचला का शृंगार सजायेगा,
जीवन का हर वाद्य स्वयं प्रस्तुत होकर
यौवन का संगीत सुनाने आयेगा,

पृष्ठ-पृष्ठ पर तब तेरी शुभगाथा को
पृष्ठों का आकार बढ़ाना ही होगा,
एक साल का नहीं अनन्त युगों का क्रम
मानव तेरे गीतों की गायेगा धुन!

एक साल कम हुआ और इस जीवन का,
नये साल का पृष्ठ खोलने वाले सुन!
छोटी-सी है जान बवाल सैकड़ों हैं
छुटकारे का आँख खोलकर रस्ता चुन!

- शिवशंकर वशिष्ठ

 

Previous Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश