अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
सारे जहाँ से अच्छा (काव्य)  Click to print this content  
Author:इक़बाल

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।
हम बुलबुलें हैं इसकी वह गुलिस्तां हमारा ॥

ग़ुर्बत में हों अगर हम रहता है दिल वतन में।
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा ॥

परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमां का।
वो संतरी हमारा वो पासवां हमारा ॥

गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियां।
गुलशन है जिसके दम से रश्के जिनां हमारा॥

ऐ आबे रोदे गंगा वह दिन है याद तुझको।
उतरा तेरे किनारे जब कारवां हमारा ॥

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा ॥

यूनान, मिस्र, रोमा सब मिट गए जहां से।
अब तक मगर है बाकी नामों निशां हमारा ॥

कुछ बात है कि हस्ती मिटती मिटाये।
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमां हमारा ॥

'इक़बाल' कोई महरम अपना नहीं जहां में।
मालूम क्या किसी को दर्दे निहां हमारा ॥

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।
हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलिसतां हमारा॥

- इक़बाल

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