जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
व्यापारी और नक़लची बंदर  (बाल-साहित्य )  Click to print this content  
Author:अज्ञात

एक टोपी बेचने वाला व्यापारी था वह नगर से टोपियाँ लाकर गाँव में बेचा करता था। एक दिन वह दोपहर के समय जंगल में जा रहा था कि थककर एक पेड़ के नीचे बैठ गया। उसने टोपियों की गठरी एक तरफ रख दी। थकावट के कारण पेड़ की छाँव और ठंडी हवा के चलते शीघ्र ही टोपी वाले व्यापारी को नींद आ गई।

पेड़ पर कुछ बंदर बैठे थे। व्यापारी को सोता देख वे पेड़ से नीचे उतर आए और उन्होंने वहां पड़ी गठरी खोल ली। यह देखकर की व्यापारी ने टोपी पहन रखी है अपने नक़लची स्वभाव के कारण सभी बंदरों ने भी टोपियां पहन लीं। फिर सभी बंदर मस्ती में उछल-कूद करने लगे।

उनकी उछल-कूद से व्यापारी की नींद खुली तो उसने सभी बन्दरों को टोपियाँ पहने देखा। व्यापारी बड़ा दुखी हुआ वह सिर से टोपी उतार सोच में अपना सिर खुजलाने लगा तो उसने देखा कि बंदर भी वैसा ही करने लगे। व्यापारी को उनकी नक़लची प्रवृति का ध्यान आया और उसे एक उपाय सुझा। उसने जानबूझ कर बंदरों को दिखाते हुए अपनी टोपी गठरी पर फेंक दी। बंदरों ने भी उसकी नक़ल करते हुए अपनी-अपनी टोपी फेंक दी। अब व्यापारी ने बंदरों को लाठी दिखाकर शोर करते हुए भगा दिया व सभी टोपियां इकट्ठी करके अपनी गठरी बाँध व्यापारी ने अपनी राह पकड़ी।

शिक्षा - नक़ल के लिए भी अक्ल चाहिए।

 

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