अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
तितली | बाल कविता (काव्य)  Click to print this content  
Author:नर्मदाप्रसाद खरे

रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबके मन को भाते हैं।
कलियाँ देख तुम्हें खुश होतीं फूल देख मुसकाते हैं।।

रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबका मन ललचाते हैं।
तितली रानी, तितली रानी, यह कह सभी बुलाते हैं।।

पास नहीं क्यों आती तितली, दूर-दूर क्यों रहती हो?
फूल-फूल के कानों में जा धीरे-से क्या कहती हो?

सुंदर-सुंदर प्यारी तितली, आँखों को तुम भाती हो।
इतनी बात बता दो हमको हाथ नहीं क्यों आती हो?

इस डाली से उस डाली पर उड़-उड़कर क्यों जाती हो?
फूल-फूल का रस लेती हो, हमसे क्यों शरमाती हो?

- नर्मदाप्रसाद खरे

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लेखक | नर्मदाप्रसाद खरे का जीवन-परिचय

जबलपुर, मध्यप्रदेश मे जन्में नर्मदाप्रसाद खरे म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री पद पर आसीत रहे।

'प्रेमा' के सहायक संपादक तथा 'शुभचिंतक' व 'युगारंभ' के संपादक रहे।

आपने 'कविता मंजरी' जैसी पुस्तकों का संपादन भी किया।

आपके प्रमुख कविता संग्रह हैं- 'ज्योति-गंगा तथा 'स्वर-पाथेय। 'रोटियों की वर्षा' इनका बहुप्रशंसित कहानी संग्रह है।

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