देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
सुभाष चन्द्र बोस का हिंदी प्रेम  (विविध)  Click to print this content  
Author:भारत-दर्शन संकलन

सुभाषबाबू हिन्दी पढ़ लिख सकते थे, बोल सकते थे, पर वह इसमें बराबर हिचकते और कमी महसूस करते थे। वह चाहते थे कि हिन्दी में वह हिन्दी भाषी लोगों की तरह ही सब काम कर सकें। एक दिन उन्होंने अपने उदगार प्रकट करते हुए कहा, "यदि देश में जनता के साथ राजनीति करनी है, तो उसका माध्यम हिन्दी ही हो सकती है। बंगाल के बाहर मैं जनता में जाऊं तो किस भाषा में बोलूं। इसलिए काँग्रेस का सभापति बनकर मैं हिन्दी खूब अच्छी तरह न जानू तो काम नहीं चलेगा। मुझे एक मास्टर दीजिए, जो मेरे साथ रहे और मेरा हिन्दी का सारा काम कर दे। इसके साथ ही जब मैं चाहूं और मुझे समय मिले तब मैं उससे हिन्दी सीखता रहूँ।"

श्री जगदीशनारायण तिवारी को, जो मूक काँग्रेस कर्मी थे और हिन्दी के अच्छे शिक्षक थे, सुभाषबाबू के साथ रखा गया। हरिपुरा काँग्रेस में तथा सभापति के दौरे के समय वह बराबर सुभाषबाबू के साथ रहे। सुभाषबाबू ने बड़ी लगन से हिन्दी सीखी और वह सचमुच बहुत अच्छी हिन्दी लिखने, पढ़ने और बोलने लगे।

'आजाद हिंद फौज' का काम और सुभाषबाबू के वक्तव्य प्राय: हिन्दी में होते थे। सुभाषबाबू भविष्यद्रष्टा थे, जानते थे कि जिस देश की अपनी राष्ट्रभाषा नहीं होती, वह खड़ा नहीं रह सकता।


साभार - बड़ों की बड़ी बातें, सस्ता साहित्य मंडल प्रकाशन


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सुभाष चन्द्र बोस का हिंदी प्रेम

 

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