यदि पक्षपात की दृष्टि से न देखा जाये तो उर्दू भी हिंदी का ही एक रूप है। - शिवनंदन सहाय।
भगतसिंह के खेल (विविध)  Click to print this content  
Author:भारत-दर्शन संकलन

कहते हैं ‘पूत के पांव पालने में ही दिखाई पड़ जाते हैं’।

पांच वर्ष की बाल अवस्था में ही भगतसिंह के खेल भी  अनोखे थे। वह अपने साथियों को दो टोलियों में बांट देता था और वे परस्पर एक-दूसरे पर आक्रमण करके युद्ध का अभ्यास किया करते। भगतसिंह के हर कार्य में उसके वीर, धीर और निर्भीक होने का आभास मिलता था।

एक बार सरदार किशनसिंह इस बालक को लेकर अपने मित्र श्री नन्द किशोर मेहता के पास उनके खेत पर गए। दोनों मित्र बातों में लग गए और बालक भगत अपने खेल में लग गया। 

नन्द किशोर मेहता का ध्यान भगतसिंह के खेल कि ओर आकृष्ट हुआ। भगतसिंह मिट्टी के ढेरों पर छोटे-छोटे तिनके लगाए जा रहा था।

उनके इस कार्य को देखकर नंद किशोर मेहता बड़े स्नेहभाव से बालक भगतसिंह से बातें करने लगे—


‘‘तुम्हारा क्या नाम है ?’’ श्री नंदकिशोर मेहता ने पूछा।


बालक ने उत्तर दिया—‘‘भगतसिंह।’’


‘‘तुम क्या करते हो ?’’


‘‘मैं बंदूकें बेचता हूं।’’ बालक भगतसिंह ने बड़े गर्व से उत्तर दिया।


‘‘बंदूकें...?’’


‘‘हां, बंदूकें।’’


‘‘वह क्यों ?’’


‘‘अपने देश के स्वतंत्र कराने के लिए।’’


‘‘तुम्हारा धर्म क्या है ?’’


‘‘देशभक्ति। देश की सेवा करना।’’

श्री नन्द किशोर मेहता राष्ट्रीय विचारों से ओत-प्रोत राष्ट्रभक्त व्यक्ति थे। उन्होंने बालक भगतसिंह को बड़े स्नेहपूर्वक  अपनी गोदी में उठा लिया। मेहता जी उसकी बातों से अत्यधिक प्रभावित हुए और सरदार किशन सिंह से बोले, ‘‘भाई ! तुम बड़े भाग्यवान् हो, जो तुम्हारे घर में ऐसे होनहार व विलक्षण बालक ने जन्म लिया है। मेरा इसे हार्दिक आशीर्वाद है, यह बालक संसार में तुम्हारा नाम रोशन करेगा। देशभक्तों में इसका नाम अमर होगा।’’

वास्तव में समय आने पर मेहता की यह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई।

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