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न्यूज़ीलैंड की भारतीय पत्रकारिता के गौरवशाली 100 वर्ष पर ऑनलाइन गोष्ठी (विविध)  Click to print this content  
Author:भारत-दर्शन समाचार

New Zealand Ki Patrkarita Ke 100 Varsh

17 जनवरी 2022 (न्यूज़ीलैंड): न्यूज़ीलैंड की भारतीय पत्रकारिता 100 वर्ष की हो चुकी है। इस अवसर पर रविवार, 16 जनवरी 2022, न्यूज़ीलैंड से प्रकाशित ऑनलाइन हिंदी पत्रिका भारत-दर्शन और वैश्विक हिंदी परिवार ने एक ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया। इस आयोजन में मुख्य अतिथि के तौर पर न्यूज़ीलैंड में भारत के उच्चायुक्त, ‘मुक्तेश कु॰ परदेशी’, विशिष्ट अतिथि के तौर पर वरिष्ठ पत्रकार, ‘राहुल देव’ और अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के मानद निदेशक ‘नारायण कुमार‘ सम्मिलित हुए। इसकी अध्यक्षता केंद्रीय हिंदी शिक्षण मण्डल (भारत) के उपाध्यक्ष, अनिल ‘जोशी’ और संचालन प्रो॰ राजेश कुमार ने किया। 

न्यूज़ीलैंड से प्रकाशित होने वाले विभिन्न भाषाओं के अनेक पत्रकार और संपादकों ने ‘न्यूज़ीलैंड की भारतीय पत्रकारिता’ पर अपने विचार रखे। वक्ताओं में न्यूज़ीलैंड से वेंकट रमन (संपादक, इंडियन न्यूज़लिंक), संदीप सिंह (इंडियन वीकेंडर), कुलवंत कौर (संपादक, संपादक कूक) और रोहित कुमार हैप्पी (संपादक, भारत-दर्शन ऑनलाइन हिंदी पत्रिका) और उत्तम शर्मा (अपना टीवी) सम्मिलित हुए। 

वैश्विक परिवार के वरिष्ठ सदस्य डॉ॰ जयशंकर यादव ने काव्यात्मक शैली से कार्यक्रम का शुभारंभ किया। आयोजन की पृष्ठभूमि का परिचय देते हुए, उन्होंने केंद्रीय हिंदी संस्थान के डॉ॰ राजवीर सिंह को औपचारिक स्वागत हेतु आमंत्रित किया। अभिनंदन के पश्चात कार्यक्रम के संचालक प्रो॰ राजेश कुमार ने विधिवत गोष्ठी को आगे बढ़ाया।   

न्यूज़ीलैंड की भारतीय पत्रकारिता पर एक वृत्तचित्र दिखाया गया। इसमें 1921 से वर्तमान तक की भारतीय पत्रकारिता का फिल्मांकन था। भारत-दर्शन पत्रिका द्वारा प्रस्तुत लगभग तीन मिनट की यह वीडियो एक सदी की पत्रकारिता की ऐतिहासिक कहानी है। इसमें बताया गया है कि कैसे 1920 में न्यूज़ीलैंड में आ बसे एक गुजराती नवयुवक ने 1921 में अपने कुछ मित्रों के साथ मिलकर, इस देश में एक मासिक आरंभ किया और भारतीय पत्रकारिता की नींव रखी। न्यूज़ीलैंड का पहला मासिक समाचार पत्र ‘आर्योदय’ था। यह गुजराती भाषा में था और इसके संपादक जेलाल कल्याणजी नेताली थे। गुजराती से आरंभ हुई न्यूज़ीलैंड की पत्रकारिता में अनेक रोचक तथ्य देखने को मिलते हैं, जैसे 1992 में हस्तलिपि से हिंदी प्रकाशन का आरंभ होना और नब्बे के दशक में न्यूज़ीलैंड से इन्टरनेट पर विश्व का पहला प्रकाशन प्रकाशित होना। वर्तमान में इस देश में अनेक भाषाओं में भारतीय प्रकाशन उपलब्ध हैं। 

मुख्य अतिथि उच्चायुक्त, ‘मुक्तेश कु॰ परदेशी’ ने केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, विश्व हिंदी सचिवालय, भारत-दर्शन तथा वैश्विक हिंदी परिवार को इस आयोजन के लिए शुभकामनाएँ दी। अपने वक्तव्य में भारतीय पत्रकारिता के 100 वर्ष पूर्ण होने पर उन्होंने प्रसन्नता जतायी। उच्चायुक्त ने पहले हिंदी में वक्तव्य आरंभ किया लेकिन अन्य अतिथि भारतीय वक्ताओं का सम्मान करते हुए चर्चा को अँग्रेजी में आगे बढ़ाया। अतिथि वक्ताओं में हिंदी के अतिरिक्त तमिल, पंजाबी व अन्य भारतीय भाषी भी सम्मिलित थे। उच्चायुक्त, परदेशी ने कहा,”मुझे बहुत खुशी है कि हम न्यूजीलैंड में भारतीय पत्रकारिता के 100 वर्ष पूरे कर चुके हैं। 1921 में आरंभ हुए पहले भारतीय  प्रकाशन के सौ वर्ष बाद आज ढेर सारे अखबार, रेडियो, टीवी और वेब प्रकाशन हैं। हिंदी के अतिरिक्त अँग्रेजी, पंजाबी और गुजराती भाषा में प्रकाशन हो रहे हैं। मुझे हाल ही में पता चला कि दक्षिण भारत की भाषाओं में भी प्रकाशन उपलब्ध हैं।“ 

उच्चायुक्त ने न्यूज़ीलैंड के प्रारम्भिक प्रवासी भारतीयों की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा,  मित्रो आपको विश्वास नहीं होगा, यदि आप उस समय के बारे में सोचें तो न्यूज़ीलैंड भिन्न था। उस समय यहाँ की जनसंख्या केवल 1.24 मिलियन थी। सत्तारूढ़ ‘लेबर पार्टी’ को गठित हुए मुश्किल से केवल पाँच वर्ष हुए थे। 1921 में ‘आर्योदय’ के प्रकाशन के एक वर्ष बाद न्यूज़ीलैंड में पहली प्रसारण सेवा आरंभ हुई थी। उस समय यहाँ एक भी रेडियो स्टेशन नहीं था। भारतीयों की संख्या बहुत कम थी। उच्चायुक्त ने इस अवसर पर ‘आर्योदय’ के संपादक जेलाल नेताली को स्मरण किया और उनके इस साहसिक कार्य की प्रशंसा की। 

इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव ने वैश्विक पत्रकारिता पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने बताया, हिंदी पत्रकारिता 196 वर्ष की हो चुकी है। उदन्त मार्तण्ड हिंदी का प्रथम समाचार पत्र था, जो  1826 में आरंभ हुआ। उन्होंने पत्रकारिता विशेषतः विदेश की भारतीय पत्रकारिता के उत्तरदायित्वों पर भी चर्चा की, “पत्रकारिता का पहला उद्देश्य होता है, समाज को जोड़ना। हम पाते हैं, विदेशों में जिन-जिन लोगों ने प्रकाशन किए, वे केवल प्रकाशन तक सीमित न रहकर अपने समुदाय का नेतृत्व भी करते थे। न्यूज़ीलैंड की भारतीय पत्रकारिता देखें तो नेताली जी ने भी केवल प्रकाशन नहीं किया, अपने समुदाय का नेतृत्व भी किया। वे एक साथ कई संगठनों, कई मोर्चों पर, और कई आयामों में, कई क्षेत्रों में सक्रिय थे। प्रकाशन ऐसी जगहों पर एक सामाजिक नेतृत्व और सामाजिक एकत्रीकरण का माध्यम भी बनता है।“       

रोहित कुमार हैप्पी ने अपने वक्तव्य में आदर्श पत्रकारिता पर बल दिया, “पत्रकारिता व्यापार नहीं है। हमें गणेश शंकर विद्यार्थी और गांधी जैसे पत्रकारों की आवश्यकता है।“ 

इंडियन न्यूज़लिंक के संपादक वेंकट रमन ने अँग्रेजी में अपने भाव व्यक्त किए।  उन्होंने अपने पत्र की पृष्ठभूमि और भारतीय पत्रकारिता में इसकी भूमिका के बारे में बताया। उन्होंने अपने पत्र की सामाजिक गतिविधियों के बारे में भी जानकारी दी। 

इंडियन वीकेंड के संपादक ने अपनी बात हिंदी-अँग्रेजी में व्यक्त की। उन्होंने कहा, “मैं पत्रकारिता को एक महायज्ञ की तरह देखता हूँ, जिसमें हम सभी को कुछ न कुछ आहुति देने का अवसर मिलता है।“ उन्होंने अपने पत्र के बारे में भी जानकारी दी। यह पत्र लगभग 13 वर्ष से प्रकाशित हो रहा है और यह सामुदायिक पत्रकारिता में मुख्य भूमिका निभा रहा है।

कूक की संपादक, ‘कुलवंत कौर’ ने भारतीय पत्रकारिता की चर्चा करते हुए कहा कि सौ वर्ष की पत्रकारिता सरल तो नहीं रही होगी। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, “यह सोचने की बात है कि यदि आपका प्रकाशन निशुल्क वितरित होता है, इसमें से कुछ मिलता भी नहीं तो फिर आप इसे क्यों कर रहे हैं? यह बहुत बड़ा प्रश्न है।” उन्होंने बताया की उनके पत्र को 19 वर्ष हो गए है, लेकिन यदि यह ‘फ़ैमिली बिजनेस’ आधारित प्रकाशन न होता तो अभी तक बंद हो गया होता। ‘कूक’ का हिंदी संस्करण भी 2005 से 2008 के बीच चला लेकिन हिंदी प्रकाशन को विज्ञापन व अधिक समर्थन इत्यादि न मिलने के कारण बंद कर देना पड़ा।  

‘अपना टीवी’ के प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित उत्तम शर्मा ने भारतीय पत्रकारिता में हिंदी की भूमिका पर बल दिया। उन्होंने कहा, “हमारा वसुधैव कुटुम्बकम् का सिद्धांत है।“ अपना टीवी अनेक भारतीय भाषाओं में अपना प्रसारण करता है।   

अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के मानद निदेशक नारायण कुमार ने कहा, “न्यूज़ीलैंड की पत्रकारिता के सौ वर्ष के इस आयोजन में अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद की ओर से यहाँ उपस्थित होने में, और भी प्रासंगिकता का अनुभव होता है, क्योंकि हमारे संस्थापक बालेश्वर अग्रवाल ने भारत में सबसे पहले हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं की संवाद एजेंसी ‘हिदोस्तान समाचार’ आरंभ की थी।“ नारायण जी ने वैश्विक पत्रकारिता में गांधी जी की भूमिका पर भी चर्चा की और न्यूज़ीलैंड की पत्रकारिता में भारत-दर्शन की भूमिका की भी सराहना की। 

अंत में केंद्रीय हिंदी शिक्षण मण्डल के उपाध्यक्ष, अनिल ‘जोशी’ ने अपने विचार साझा किए। उन्होंने प्रशांत की पत्रकारिता और इसमें फीजी की महत्वपूर्ण भूमिका की चर्चा की। अनिल जोशी केंद्रीय हिंदी शिक्षण मण्डल के उपाध्यक्ष के पदभार से पहले फीजी में एक राजनयिक के रूप में काम कर चुके हैं। उन्होंने न्यूज़ीलैंड की चर्चा करते हुए कहा, ”यह एक ऐतिहासिक क्षण है, जब हम न्यूज़ीलैंड की भारतीय पत्रकारिता के बारे में विचार कर रहे हैं।“ 

भारतीय भाषाओं की बात करते हुए उन्होंने कहा, “यह देखकर अच्छा लगा कि कुछ लोगों ने अपनी-अपनी भाषाओं जिसमें वे दक्ष हैं, अपने विचार व्यक्त किए। यह बात भी विचारणीय है कि हम जिस भाषा में लिखते हैं और सोचते हैं, उसी में अपने विचार व्यक्त करें। ऐसे में मुझे वे करोड़ों भारतवासी याद आ जाते हैं, जो एक भाषा में सोचते हैं लेकिन उन्हें दूसरी भाषा में बोलने के लिए बाध्य किया जाता है।" 

अंत में, ऑस्ट्रेलिया से वैश्विक हिंदी परिवार की सदस्य रेखा राजवंशी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। तत्पश्चात प्रो॰ राजेश कुमार ने कार्यक्रम के समापन की घोषणा की। 

[भारत-दर्शन समाचार]

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