जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
मुआवज़ा (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author:सुनील कुमार शर्मा

".... मेरा सारा सामान, भारी बरसात में गिरी छत के नीचे दब गया है.... मुआवज़ा कब मिलेगा?" रमिया किरायेदारनी ने वार्ड के पार्षद से पूछा।

“जी आपको मुआवज़ा नहीं मिल सकता।" पार्षद लापरवाही से बोला 

“क्यों?” रमिया ने घबराकर पूछा।

“मुआवज़ा गरीबों के गिरे हुए मकानों का आया है, बर्बाद हुए सामान का नहीं।" पार्षद ने उसे समझाया।

“गरीबो के पास मकान होते ही कहाँ है?" रमिया गुस्से से पैर पटकती हुई, उठकर चल दी।

-सुनील कुमार शर्मा
 ईमेल:  sharmasunilkumar727@gmail.com

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