अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
तेंदुए का शिकार | शेखचिल्ली (बाल-साहित्य )  Click to print this content  
Author:भारत-दर्शन संकलन

एक बार झज्जर के नवाब ने शेख चिल्ली को नौकरी पर रख लिया था। अब तो शेख चिल्ली की समाज में ख़ासी पूछ होने लगी। 

एक दिन नवाब साहब शिकार के लिए जा रहे थे। शेख चिल्ली ने भी साथ चलने की विनती की।  ''अरे मियां तुम घने जंगलों में क्या करोगे?'' नवाब ने पूछा। ''जंगल कोई दिन में सपने देखने की जगह थोड़े ही है! क्या तुमने कभी किसी चूहे का शिकार किया है जो तुम अब तेंदुए का शिकार करोगे?''

''सरकार आप मुझे बस एक मौका दीजिए, फिर देखिए " शेख चिल्ली ने बड़े अदब के साथ फरमाया।

फिर क्या था!  नवाब असहनब मान गए। अब जनाब शेख चिल्ली भी हाथ में बंदूक थामे शिकार पार्टी के साथ हो लिए। उसने अपने आपको एक मचान के ऊपर पाया। थोड़ी ही दूर पर एक बड़ा पेड़ था जिससे तेंदुए का भोजन- एक बकरी बंधी थी। चांदनी रात थी। इस माहौल में जब भी तेंदुआ बकरी के ऊपर कूदेगा तो वो साफ दिखाई देगा। दूसरी मचानों पर नवाब साहब और उनके अनुभवी शिकारी चुपचाप तेंदुए के आने का इंतजार कर रहे थे। इस तरह जब कई घंटे बीत गए तो शेख चिल्ली कुछ बेचैन होने लगा। ''वो कमबख्त तेंदुआ कहां है?'' उसने मचान पर अपने साथ बैठे दूसरे शिकारी से पूछा।

''खामोश रहो!'' शिकारी ने फुसफुसाते हुए कहा। ''तुम तो बेड़ा गर्क कर दोगे!''

शेख चिल्ली चुप हो गया परंतु उसे यह अच्छा नहीं लगा। यह भी भला कोई शिकार है कि हम सब लोग पेड़ों में छिपे बैठे हैं और एक जानवर का इंतजार कर रहे हैं? हमें अपनी बंदूक उठाए पैदल चलना चाहिए! परंतु लोग कहते हैं कि तेंदुआ बहुत तेज दौड़ता है। वो जंगल में उसी तरह दौड़ता है जैसे मेरी पतंग आसमान में दौड़ती है, खैर छोड़ो भी। हम उसके पीछे-पीछे दौड़ेंगे। हम आखिर तक उसका पीछा करेंगे। धीरे-धीरे करके बाकी शिकारी पीछे रह जाएंगे। मैं सबको पीछे छोड़कर आगे जाऊंगा। मैं तेंदुए के एकदम पीछे जाऊंगा। तेंदुए को पता होगा कि मैं उसके एकदम पीछे हूँ। वो रुकेगा। वो मुड़ेगा। उसे पता होगा कि अब उसका अंत नजदीक है। वो सीधा मेरी आखों में देखेगा। एक शिकारी की आखों में देखेगा। और फिर मैं....!

---धांय और तेंदुआ मिमियाती बकरी के सामने ढेर होकर गिर गया। वो बस बकरी को दबोचने वाला ही था!

एक शिकारी बड़ी सावधानी से तेंदुए के मृत शरीर को देखने के लिए गया। तेंदुआ मर चुका था। पर इतनी फुर्ती से उसे किसने मारा था? 

'इसने' शेख चिल्ली के साथी ने शेख चिल्ली की पीठ ठोकते जुए उसे शाबाशी दी।

''क्या गजब का निशाना है!'' उसने कहा। ''तुमने तो सब शिकारियों को मात कर दिया!''

''शाबाश मियां! शाबाश!'' नवाब साहब ने शेख चिल्ली को बधाई देते हुए कहा। इस बीच में पूरी शिकार पार्टी शेख द्वारा मारे गए तेंदुए का मुआयना करने के लिए इकट्‌ठी हो गई थी।

''मुझे लगा कि कोई भी शिकारी मुझे चुनौती नहीं दे पाएगा परंतु शेख चिल्ली ने हम सबको सबक सिखा दिया। वाह! क्या उम्दा निशाना था!''

शेख चिल्ली ने बडे अदब से अपना सिर झुकाया हुआ था। तेंदुआ कब आया और कैसे उसकी बंदूक चली, शेख चिल्ली को इसकी कोई खबर न थी।  तेंदुआ सचमुच मर चुका था और शेख चिल्ली को अव्वल दर्जे का शिकारी माना जा चुका था। 

[भारत-दर्शन संकलन]

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