देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
बच्चो, चलो चलाएं चरखा | बाल कविता (काव्य)  Click to print this content  
Author:आनन्द विश्वास

चरखा

बच्चो, चलो चलाएं चरखा,
बापू जी ने इसको परखा।
चरखा अगर चलेगा घर-घर,
देश बढ़ेगा इसके दम पर।

इसको भाती नहीं गरीबी,
ये बापू का बड़ा करीबी।
चरखा चलता चक्की चलती,
इससे रोटी-रोज़ी मिलती।

ये खादी का मूल-यंत्र है,
आजादी का मूल-मंत्र है।
इस चरखे में स्वाभिमान है,
पूर्ण स्वदेशी का गुमान है।

इसे चलाकर खादी पाओ,
विजली पाकर वल्व जलाओ।
दूर गाँव जब चलता चरखा,
विजली पा सबका मन हरखा।

खादी को घर-घर पहुँचाओ,
बुनकर के कर सबल बनाओ।
घर-घर जब होगी खुशहाली,
तभी मनेगी सही दिवाली।

चलो, चलें खादी अपनाएं,
खादी के प्रति प्रेम जगाएं।
मन में गांधी, तन पर खादी,
तब समझो पाई आजादी।

मेरे 'मन की बात' सुनो तुम,
बापू की सौगात सुनो तुम।
बापू को चरखा था प्यारा,
और स्वच्छता उनका नारा।

- आनन्द विश्वास

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