जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
लॉकडाउन और महँगाई (कथा-कहानी)  Click to print this content  
Author: वीणा सिन्हा

कोरोना संक्रमरण की वजह से पिछले तीन महीने से जारी लॉकडाउन खत्म हो गया था ।

बेटे से मां पूछती है-"बेटा मैं बाजार जा रही हूँ।" "कौन-सी सब्जी खाओगे ? करेला, बैगन, भिंडी, गोभी, भंटा कि रोहू, कतला, सिंघी, झींगा मछली या चिकेन, मटन ला दूँ ?"

बारहवीं में पढ़ रहा बेटा किताबों में से सिर निकालकर माँ की ओर देखकर कहता है- "तुम्हें जो ठीक लगे ले आना, माँ।"

रात के खाने के टेबुल पर बेटा इंतजार कर रहा था.....'आज जरूर माँ ने कुछ बढि़या खाना पकाया होगा।' लेकिन यह क्या.........आलू की सब्जी और रोटी थाली में डालकर माँ ने बेटे के सामने रख दिया। शायद कोई कारण रहा होगा, यह सोच बेटा चुपचाप खाना खाकर उठ गया।

दूसरे दिन भी शाम को सब्जी का थैला व पर्स लिए माँ बेटे से पूछ रही थी- "बेटा मैं बाजार जा रही हूँ। तुम्हारे लिए कौन सी सब्जी ला दूं, भिंडी, करेला, बैगन, गोभी आलू कि रोहू, कतला, सिंघी, झींगा मछली या चिकेन कि मीट खाओगे ?"

बेटे ने सपाट जबाव दिया- "माँ, तुझे जो पसंद हो, वही ले आना .....।"

रात्रि में बेटा खाने के मेज पर यह सोचते हुए खाने का इंतजार कर रहा था कि आज तो माँ ने ज़रूर बढ़िया वेज या नॉनवेज खाना बनाया होगा। लेकिन आज भी माँ ने आलू की सब्जी तथा रोटी बेटे की थाली में परोस दी।

यह क्रम हफ्तों चलता रहा। माँ शाम को बाजार जाने से पहले सब्जियों का नाम गिनाती लेकिन रात में खाने के समय वही आलू की सब्जी तथा रोटी बेटे की थाली में परोस देती। आखिर बेटे के सब्र का बांध टूट गया। वह माँ से पूछ बैठा "माँ, एक बात बताओ, जब तुम्हें आलू की सब्जी ही बनानी होती है तो बाजार जाते समय क्यों ढेर सारी सब्जियों तथा मछली-मीट का नाम सुनाती हो ?"

बेटे के प्रश्न सुनकर आह भरती हुई माँ कहने लगी-"क्या करूं बेटा ! आजकल कोरोना काल में महँगाई इतनी बढ़ गई है कि सब्जी खरीदना मुश्किल हो गया है। मैं तुम्हें सब्जियों तथा मछली-मीट का नाम इसलिए सुनाती हूँ कि तुम महँगी सब्जी खा तो नहीं सकते लेकिन कहीं इनका नाम न भूल जाओ।"

बेटे ने माँ की विवशता की गहराई समझ ली। अगले दिन जब शाम को थैला तथा पर्स लिए जैसे ही माँ बाजार जाने के लिए तैयार हुई बेटा बोल पड़ा- "माँ! करेला, भिंडी, बैगन, भंटा, गोभी, कतला, रोहू, नैनी, झींगा, चिकन-मटन नहीं, मुझे आलू पसंद है और तुम आलू ही लेकर आना, माँ !"

बेटे की बात सुन माँ मंद-मंद मुस्कुराती हुई बाजार जाने के लिए आगे बढ़ गई ।


वीणा सिन्हा
सम्पादक
‘द पब्लिक' हिन्दी मासिक पत्रिका
प्राज्ञ सभा सदस्य
नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान
ई-मेल : thepublicmonthly@yahoo.com

 

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