अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
वचनामृत  (बाल-साहित्य )  Click to print this content  
Author:प्रो आनंदशंकर बापुभाई ध्रुवजी

तुम्हें चाहिए सदा बहन-भाई से मिलकर रहना;
सबसे मीठे बोल-बोलना, नहीं वचन कटु कहना ।

मात-पिता-गुरु आदि बड़ों का मान सदा ही करना ;
पढ़ने में मन खूब लगाना, कुपथ नहीं पग धरना ।

जैसे छोटी नींव डालकर बड़ा महल बनवाते ;
वैसे विद्या-नींव डाल शिशु में मनुष्यता लाते ।

जो कुछ बचपन में पढ़ लोगे काम वही आवेगा;
भला बना सौ भला, बुरा सो बुरा नाम पावेगा।

कभी न बोलो झूठ, मान लो उत्तम सीख हमारी ।
बिना बात बक बक करने से होती है बस ख़्वारी ।

सदा डरो तुम बुरे काम से पाप न रक्खो मन में;
याद रहे, प्रभु व्याप रहा है सारे जड़-चैतन में।

रक्खो ध्यान उसी का हरदम सुधरे बुद्धि तुम्हारी;
सेवा करो पिता-माता की नाम कमाओ भारी।

- प्रो आनंदशंकर बापुभाई ध्रुवजी
  अनुवाद: बदरीनाथ भट्ट

 

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