जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
दुनिया मतलब की गरजी  (काव्य)  Click to print this content  
Author:द्यानत

दुनिया मतलब की गरजी, अब मोहे जान पडी ।।टेक।।
हरे वृक्ष पै पछी बैठा, रटता नाम हरी।
प्रात भये पछी उड चाले, जग की रीति खरी ।।१।।

जब लग बैल वहै बनिया का, तब लग चाह घनी ।
थके बैल को कोई न पूछे, फिरता गली गली ।।२।।

सत्त बाध सत्ती उठ चाली, मोह के फन्द पड़ी।
'द्यानत' कहै प्रभू नहि सुमरया, मुरदा संग जली ।।३।।

- द्यानत

 

Previous Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश