अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
माँ मारेंगी !  (बाल-साहित्य )  Click to print this content  
Author:रघुवीर शरण

अगर हाथ देंगे नाली में, माँ मारेंगी ।
अगर साथ देंगे गाली में माँ मारेंगी ॥
कपड़े मैले नहीं करेंगे, माँ मारेंगी ।
मिट्टी सर में नहीं भरेंगे, माँ मारेंगी ।

लेते नहीं उधार किसी से, माँ मारेंगी ।
करें नहीं तकरार किसी से, माँ मारेगी ।।
अगर तोड़ते रहे खाट तो, माँ मारेंगी ।
अगर खेल के रहे ठाठ तो, माँ मारेंगी ॥

अगर किसी को तंग करा तो, माँ मारेंगी ।
जेबों में यदि रंग भरा तो, माँ मारेंगी ।।
नहीं किया यदि याद पाठ तो, माँ मारेंगी !
ली मटरे की अगर चाट तो, माँ मारेगी ।

रघुवीर शरण [1948]
[भारत-दर्शन शोध स्वरूप]

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