अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
सबसे बढ़कर (बाल-साहित्य )  Click to print this content  
Author:रमापति शुक्ल

आलपीन के सिर होता पर
बाल न होता उसके एक ।

कुर्सी के दो बाँहें हैं पर
गेंद नहीं सकती है फेंक ।

कंधी के हैं दाँत मगर वह
चबा नहीं सकती खाना ।

गला सुराही का है पतला
किंतु न गा सकती गाना ।

होता है मुँह बड़ा घड़े का
पर वह बोल नहीं सकता ।

चार पैर पलंग के होते
पर वह डोल नहीं सकता ।

जूते के है जीभ मगर वह
स्वाद नहीं चख सकता है ।

आँखें होते हुए नारियल
देख नहीं कुछ सकता है ।

है मनुष्य के पास सभी कुछ
ले सकता है सबसे काम
इसीलिए दुनिया में सबसे
बढ़कर है उसका ही नाम।

- रमापति शुक्ल
[ बाल भारती 2002]

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