देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 
गर मैं रहता सागर नीचे (बाल-साहित्य )     
Author:संगीता बैनीवाल

बहुत मज़े मैं करता
डॉल्फ़िन बने घोड़ागाडी
बैठ सवारी करता
ओक्टोपस की गोद में सोता
लम्बी बाँहों में वह भर लेता
रंग-बिरंगी छोटी मछलियाँ
बने सागर की तितलियाँ
सीप के मोती चमकें सारे
ज्यों चंदा संग चमकें तारे
व्हेल बनी सागर की रानी
रोब जमाए पीये पानी
सप्तरंगी किरणें सूरज देता
होली जैसा पानी होता
पीठ कछुए की पर्वत बनता
जिस पे बैठ निहारी मैं करता
गर मैं रहता सागर नीचे
बहुत मज़े मैं करता

- संगीता बैनीवाल
ई-मेल: beniwal33@yahoo.co.in

 

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