देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 
फूलों का गीत  (बाल-साहित्य )     
Author:निरंकार देव

 

हम फूलों ने सीखा खिलना
हँसना और हँसाना,
अपनी मधुर महक से सारे
उपवन की महकाना।

मन्द पवन में झूम-झूमकर
डाली पर इतराना,
भौरों के मन के प्याले को
मधु रस से भर जाना ।

तितली अपने चपल परों की
रंगत हम से पाती,
इधर-उधर उड़ अपनी छवि से
सबका चित्त लुभाती ।

गीत हमारी ही शोभा के
कोयल गाने आती,
गौरैया गुणगान हमारे
गाते नहीं अघाती ।

काँटों की गोदी में पल कर
हम हँसते रहते हैं,
सूरज की गर्मी में जलकर
हम हँसते रहते हैं।

अन्त समय धरती पर गिरकर
हम हँसते रहते हैं,
हम जीवन भर समझ न पाते
दुख किसको कहते हैं।

-निरंकार देव
[बाल-गीत, संकलन-क्षेत्रपाल, साहित्य सहयोग, इलाहाबाद, १९७४]

 

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश