क्या बन सकेगा भारत एक सुपर- पावर ? (विविध)     
Author:प्रीता व्यास

भारत में मई 2014 के चुनावों के बाद जब नरेंद्र मोदी प्रधानमन्त्री बने तो कुछ एक शिकायती सुर थे लेकिन एक बड़ा तबका था देश में जिसने पूरे जोश में, ना जाने कितनी आशाओं और उम्मीदों को नए प्रधानमंत्री से जोड़ दिया था। सिर्फ देश में ही नहीं, विदेशों में भी जहाँ-जहाँ भारतीय थे मोदी को लेकर एक नई उम्मीद उन सबने जताई। मोदी जैसे एक नाम नहीं था, एक जादू था जो सर चढ़ कर बोल रहा था। वक़्त बीतने के साथ जादू ख़त्म तो नहीं हुआ फीका सा ज़रूर कहा जा सकता है।


भारतीय राजनीति की आपसी खींच-तान छोड़ दें तो एक सपना है जिसे सारे आप्रवासी भारतीय पूरा होते देखना चाहते हैं और वो है भारत को एक सुपर- पावर के रूप में उभरते देखने का सपना।


अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बड़ी शक्ति या सुपर-पावर उस संप्रभु देश को कहते हैं जिसमें वैश्विक रूप से अपना प्रभाव डालने की क्षमता होती है। इस समय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों अमरीका, चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन को महाशक्ति माना जा सकता है। ये ऐसे देश हैं जो अंतरराष्ट्रीय घटनाओं पर सुरक्षा परिषद में वीटो पावर होने के साथ-साथ अपने धन और सैन्य शक्ति की वजह से प्रभाव डाल सकते हैं। इन पांच देशों के बाद गिना जाए तो जर्मनी और जापान दो ऐसे देश हैं जो वैश्विक स्तर पर आर्थिक रूप से तो प्रभावकारी हैं लेकिन उनकी छवि सैन्य शक्ति वाली नहीं है। इसके अलावा सऊदी अरब, सिंगापुर, ताईवान, ऑस्ट्रेलिया जैसे कुछ छोटे देश हैं, लेकिन उतने प्रभावशाली नहीं हैं।


अब भारत की बात करें, भारत को बड़ी आबादी वाले उन देशों की क़तार में शामिल किया जा सकता है जो अमीर नहीं हैं और संसाधनों के अभाव की वजह से सैन्य रूप से ताक़तवर भी नहीं हैं। इन देशों में दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया, ब्राज़ील और नाइजीरिया को गिना जा सकता है। सवाल खड़ा होता है कि एक सुपरपावर देश बनने के लिए भारत को क्या करने की ज़रूरत है? और सीधा सा उत्तर है कि सुपरपावर देश बनने के लिए सबसे पहले ज़रूरी है कि भारत एक बड़ी शक्ति बने।


अगर हम बिज़नेस से जुड़े अख़बारों पर नज़र डालें तो इनमें 'सुधार' पर बहुत ज़ोर रहता है। इस बात पर ज़ोर दिखता है कि अगर भारत को सफल होना है तो सरकार को आर्थिक सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण क़दम उठाने होंगे, ख़ासकर अपने इन्वेस्टमेंट और ट्रेड पर ध्यान देना होगा। लेकिन यहाँ मेरी बुद्धि काम नहीं कर पाती, मुझे एक सवाल परेशान करने लगता है कि कई देश ऐसे हैं जो आर्थिक सुधारों को अंजाम तो दे चुके हैं, लेकिन वे महाशक्ति नहीं हैं और ऐसे देश भी हैं जिन्होंने कोई भी आर्थिक सुधार नहीं किए हैं, लेकिन महाशक्ति हैं, तो ऐसा क्यों? यानि महाशक्ति बनने के लिए कुछ और भी है जो किया जाना चाहिए और उसे करे कौन सरकार या जनता ?


थोड़ी और दिमागी कसरत के बाद लगा कि महाशक्ति बनने के लिए केवल आर्थिक सुधार ही ज़रूरी नहीं है। सभी सफल देशों के इतिहास में दो ऐसी बातें थीं जो बिनी किसी अपवाद के मौजूद रहीं। पहली ये कि सरकार किसी भी तरह की हिंसा पर नियंत्रण रख पाने में सक्षम होती है, जनता बिना किसी दबाव के ख़ुद टैक्स भरने को तैयार रहती है, न्याय और अन्य सेवाएं उपलब्ध सुचारू रूप से काम करती हैं। फिर चाहे वो देश पूंजीवादी है, समाजवादी है, तानाशाह है या लोकतांत्रिक। दुर्भाग्य से भारत की सरकारें इस मामले में असफल रही हैं।
दूसरी बात है समाज में मज़बूती और गतिशीलता का होना। एक प्रगतिशील समाज अपनी नई सोच और परोपकार करने की प्रवृति के लिए जाना जाता है। भारत का समाज कभी धर्म पर लड़ता नज़र आता है, कभी सरकार करता तो कभी कुछ और। सड़क पर कचरा पड़ा हो तो एक प्रगतिशील देश का नागरिक उसे चुपचाप उठा कर फेक देगा जबकि भारत में लोग इस पर बहस करेंगे, आंदोलन करेंगे, लेख लिखेंगे, धरना देंगे लेकिन कचरा नहीं उठाएंगे।

अब पहली बात को लें तो साधारण शब्दों में यह क़ानून या क़ानून में बदलाव करने का मसला नहीं है। यह शासन करने के तरीक़े का मसला है। यह सरकार की नीति लागू करने की क्षमता का मसला है जिसके अभाव में क़ानून में किसी भी तरह का बदलाव कोई मायने नहीं रखेगा।


अपनी मलेशिया यात्रा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण की ये बात मुझे अच्छी लगी, उन्होंने कहा - "सुधार अंत नहीं है। मेरे लिए सुधार मंज़िल तक पहुंचने के लिए लंबे सफ़र का पड़ाव है। मंज़िल है, भारत का कायाकल्प।" अपने भाषण में उन्होंने कहा, "स्पष्ट था कि सुधार की ज़रूरत थी। हमने ख़ुद से सवाल किया- सुधार किसके लिए? सुधार का मक़सद क्या है? क्या यह सिर्फ़ जीडीपी की दर बढ़ाने के लिए हो? या समाज में बदलाव लाने के लिए हो? मेरा जवाब साफ़ है, हमें 'बदलाव के लिए सुधार' करना चाहिए।" मुझे लगता है कि उन्होंने सही दिशा में इस मुद्दे को उठाया है।


जहाँ तक मेरी बुद्धि समझ पाती है समाज सरकारों के द्वारा बाहर से नहीं बदला जाता है, बल्कि सांस्कृतिक रूप से अंदर से बदलता है। बदलाव एक अंदरूनी प्रक्रिया है इसे थोपा नहीं जा सकता। दुआ करते हैं कि बदलाव की ये अंदरूनी प्रक्रिया चल उठे और मेरा भारत भविष्य में एक महाशक्ति के रूप में उभरे।


- प्रीता व्यास

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