डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम (विविध)     
Author:भारत-दर्शन संकलन

डॉ० कलाम का जन्म 15 अक्तूबर, 1931 को एक मध्यमवर्गीय तमिल परिवार में रामेश्वर (तमिलनाडु ) में हुआ था। डॉ० कलाम के पिता जैनुलाबदीन की कोई बहुत अच्छी औपचारिक शिक्षा नहीं हुई थी। वे आर्थिक रूप से सामान्य परंतु बुद्धिमान व उदार थे। इनके पिताजी एक स्थानीय ठेकेदार के साथ मिलकर लकड़ी की नौकाएँ बनाने का काम करते थे जो हिन्दू तीर्थयात्रियों को रामेश्वरम् से धनुषकोटि ले जाती थीं। इनकी माँ, आशियम्मा उनके जीवन की आदर्श थीं। डॉ० कलाम का पूरा नाम ‘अवुल पकीर जैनुलाबदीन अब्दुल कलाम' है। डॉ० कलाम ने भौतिकी और अंतरिक्ष विज्ञान की पढ़ाई की।

अपनी सादगी व युवाओं के प्रेरणास्रोत पूर्व राष्ट्रपति डॉ० कलाम (डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम) अब हमारे बीच नहीं हैं।

27, जुलाई, 2015 की सांय 83 वर्षीय डॉ. कलाम का इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, शिलांग में निधन हो गया। वे वहाँ 'पृथ्‍वी को रहने लायक कैसे बेहतर बनाया जाए' विषय पर अपना वक्तव्य दे रहे थे। उन्‍होंने अभी बोलना आरंभ ही किया था कि ह्रदय आघात के कारण वे बेहोश हो गए। उन्हें बेथनी अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन शाम 7.45 बजे अस्पताल के डायरेक्टर डॉ. जॉन ने डॉ. कलाम के दिवंगत होने की सूचना दी। डॉ. जॉन के अनुसार 7 बजे उन्हें अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था।

छात्रों और युवाओं में डॉ० कलाम बहुत प्रसिद्ध थे। ज्ञान बांटने वाले इस महामानव का निधन भी छात्रों के बीच ही हुआ। डॉ कलाम अपनी अंतिम सांस तक सक्रिय रहे। डॉ कलाम इस समय शिलांग के दौरे पर थे और आईआईएम के छात्रों को संबोधित कर रहे थे।

राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए डॉ० कलाम को उनके द्वारा किये श्रेष्ठ कार्यों के कारण ही 'जनसाधारण का राष्ट्रपति' कहा जाता है।

'हमारे पथ प्रदर्शक' भारत के ग्याहरवें राष्ट्रपति और 'मिसाइल मैन' के नाम से प्रसिद्ध 'ए.पी.जे. अब्दुल कलाम' की चर्चित पुस्तक है और इसके अतिरिक्त 'विंग्स ऑफ़ फायर', 'इंडिया 2020- ए विज़न फ़ॉर द न्यू मिलेनियम', 'माई जर्नी' तथा 'इग्नाटिड माइंड्स- अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया' उनके द्वारा लिखी गई अन्य प्रसिद्ध पुस्तकें हैं। बहुत कम लोग यह जानते हैं कि वे अपनी पुस्तकों से हुई आमदनी (रॉयल्टी) का अधिकांश हिस्सा स्वयंसेवी संस्थाओं को सहायतार्थ में दे देते हैं। मदर टेरेसा द्वारा स्थापित 'सिस्टर्स ऑव चैरिटी' उनमें से एक है। पुरस्कारों के साथ मिली नकद राशियां भी वे परोपकार के कार्यों के लिए अलग रखते थे।

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