प्रत्येक नगर प्रत्येक मोहल्ले में और प्रत्येक गाँव में एक पुस्तकालय होने की आवश्यकता है। - (राजा) कीर्त्यानंद सिंह।
 
मेरी मातृ भाषा हिंदी  (काव्य)     
Author:सुनीता बहल

मेरी मातृ भाषा है हिंदी,
जिसके माथे पर सुशोभित है बिंदी।  
देश की है यह सिरमौर,
अंग्रेजी का न चलता इस पर जोर। 
विश्वव्यापी भाषा है चाहे अंग्रेजी,
हिंदी अपनेपन का सुख देती।
मेरी मातृ भाषा है हिंदी,
जिसके माथे पर सुशोभित है बिंदी।

देवनागरी में लिखी जाती,
जैसी बोली वैसी लिखी जाती।
यही हमारी विश्वव्यापी है पहचान,
हिंदी का हमे करना है सम्मान।
मेरी मातृ भाषा है हिंदी,
जिसके माथे पर सुशोभित है बिंदी।

बड़ा ना छोटा अक्षर कोई,
भेदभाव ना इसमें कोई। 
शब्द का हर सही अर्थ है बताती ,
हर रिश्ते को अलग शब्दों में है समझाती।
मेरी मातृ भाषा है हिंदी,
जिसके माथे पर सुशोभित है बिंदी।

तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली है यह भाषा,
इसका सम्मान बढ़ाना है हमे सबसे ज्यादा।
इस श्रेष्ठ भाषा के है हम ज्ञाता,
संस्कृत ,अरबी से इसका है गहरा नाता।
मेरी मातृ भाषा है हिंदी,
जिसके माथे पर सुशोभित है बिंदी।

हिंदी नहीं किसी दिवस की मोहताज़,
करती है अब भी हर दिल पर राज।
निराशा का कोहरा अब है छंट गया,
हिंदी भाषा का दौर फिर से आ गया। 
मेरी मातृ भाषा है हिंदी,
जिसके माथे पर सुशोभित है बिंदी।

-सुनीता बहल
sunbahl.16@gmail.com

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश