अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 
हिन्दी (काव्य)     
Author:गौरी शंकर वैद्य ‘विनम्र’

भारत माता के अन्तस की
निर्मल वाणी हिन्दी है।
ज्ञान और विज्ञान शिरोमणि,
जन-कल्याणी हिन्दी है।

भोजपुरी, अवधी, गढ़वाली,
ब्रज वीणा के तार रुचिर
देवनागरी रस की गागर,
वीणा पाणि हिन्दी है।

गौरवशाली भारतीयता की
परिभाषा हिन्दी है।
सरल, सुबोध, शब्द रस-सागर,
नूतन आशा हिन्दी है।

अखिल विश्व में सम्मानित जो फहराती है
कीर्ति-ध्वजा मातृ भूमि के गीत सुनाती,
जन प्रिय भाषा हिन्दी है।
अस्मिता मातृ भू की ललाम,
उन्नत ललाट की बिन्दी है।

अवधी की पावन सरयू है,
ब्रज भाषा कालिन्दी है।
दिनकर, मीरा, रसवान, पंत, जायसी,
प्रसाद, महादेवी महिमा गाकर हुए
अमर जो, उनकी आराध्या हिन्दी है।

-गौरी शंकर वैद्य ‘विनम्र'
पता: 117, आदिल नगर, लखनऊ (उ.प्र.)
साभार - हरिगंधा, अगस्त-सितंबर 2012

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