जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
 
असेम्बली हॉल प्रसंग (विविध)     
Author:हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक सेना

(8 अप्रैल, सन् 1929 को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा असेम्बली में बम फैंका गया था)


भारत की राजधानी देहली में सेन्ट्रल असेम्बली का अधिवेशन चल रहा था, पब्लिक सेफ्टी बिल पेश हुआ, बहस हुई, वोट लिए गए। एकाएक भवन में एक धमाका हुआ और धुआँ छा गया। बड़े-बड़े अधिकारी भागते दिखाई दिए, सभा-भवन सूना हो गया। आधे घंटे बाद पुलिस सदल पहुँची और दो नवयुवक जो गैलरी में खड़े थे बम फैंकने के अपराध में गिरफ्तार कर लिए गए। भारत-माता के यह दो सपूत थे - भगतसिंह और बटुकेश्वरदत्त।

गिरफ़्तारी के बाद सरकार की ओर से कहा गया कि यह दोनों नवयुवक न केवल असेम्बली बम कांड के अभियुक्त हैं बल्कि लाहौर सांडर्स हत्याकांड के भी अभियुक्त हैं। सीधे और भोले दिखाई देने वाले यह युवक खूनी और हत्यारे हैं। जनता को इनसे कोई सहानुभूति नहीं होनी चाहिए।

जनता ने उत्तर में कहा-

'बी. के. दत्त ज़िदाबाद'
'भगतसिंह ज़िदाबाद'

बच्चा-बच्चा गर्ज उठा -

"बी. के. दत्त ज़िदाबाद!" "भगतसिंह ज़िदाबाद!"
"इन्कलाब ज़िदाबाद!"

 

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश