अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 
महात्मा गांधी  (काव्य)     
Author:साग़र निज़ामी

कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!

दुनिया गो थी दुश्मन उसकी दुश्मन था जग सारा ।
आख़िर में जब देखा साधो वह जीता जग हारा ।।

कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!

सच्चाई के नूर से उस के मन में था उजियारा ।
बातिन में शक्ती ही शक्ती ज़ाहर में बेचारा ।।

कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!

बूढ़ा था या नए जनम में बंसी का मतवारा ।
मोहन नाम सही था पर साधो रूप वही था सारा ।।

कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!

भारत के आकाश पे वो है एक चमकता तारा ।
सचमुच ज्ञानी, सचमुच मोहन सचमुच प्यारा-प्यारा ।।

कैसा संत हमारा
गांधी
कैसा संत हमारा!

- साग़र निज़ामी

 

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