यह संदेह निर्मूल है कि हिंदीवाले उर्दू का नाश चाहते हैं। - राजेन्द्र प्रसाद।
 
कुछ दोहे (काव्य)     
Author:डॉo सत्यवान सौरभ

अपने प्यारे गाँव से, बस है यही सवाल।
बूढा पीपल है कहाँ, गई कहाँ चौपाल॥

रही नहीं चौपाल में, पहले जैसी बात।
नस्लें शहरी हो गई, बदल गई देहात॥

जब से आई गाँव में, ये शहरी सौगात।
मेड़ करें ना खेत से, आपस में अब बात॥

चिठ्ठी लाई गाँव से, जब यादों के फूल।
अपनेपन में खो गया, शहर गया मैं भूल॥

शहरी होती जिंदगी, बदल रहा हैं गाँव।
धरती बंजर हो गई, टिके मशीनी पाँव॥

गलियां सभी उदास हैं, सब पनघट हैं मौन।
शहर गए गाँव को, वापस लाये कौन॥

बदल गया तकरार में, अपनेपन का गाँव।
उलझ रहें हर आंगना, फूट-कलह के पाँव॥

पत्थर होता गाँव अब, हर पल करे पुकार।
लौटा दो फिर से मुझे, खपरैला आकार॥

खत आया जब गाँव से, ले माँ का सन्देश।
पढ़कर आंखें भर गई, बदल गया वो देश॥

लौटा बरसों बाद मैं, बचपन के उस गाँव।
नहीं रही थी अब जहाँ, बूढी पीपल छाँव॥

- डॉo सत्यवान सौरभ, भारत
ई-मेल: satywansaurabh333@gmail.com

 

 

 

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