अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 
ऐसा नहीं कि... (काव्य)     
Author:रोहित कुमार हैप्पी

ऐसा नहीं कि कोई सवालात नहीं हैं
मुंह खोलने के बस बचे हालत नहीं हैं

रंजिश कोई उससे मेरी तकरार नहीं है
बस उसके-मेरे एक ख़यालात नहीं हैं

कहने को वे कहते हैं कोई बात नहीं है
दोनों के बीच पहले-से जज़्बात नहीं हैं

जब रास्ते बदले तो बहुत कुछ बदल गया
दिल में दीवारें उठती यूं बेबात नहीं हैं

- रोहित कुमार 'हैप्पी'

 

Previous Page  |  Index Page  |   Next Page
 
 
Post Comment
 
 
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश