देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 
चिड़िया का गीत (बाल-साहित्य )     
Author:निरंकार देव 'सेवक'

सबसे पहले मेरे घर का
अंडे जैसा था आकार
तब मैं यही समझती थी बस
इतना-साही है संसार।
फिर मेरा घर बना घोंसला
सूखे तिनकों से तैयार
तब मैं यही समझती थी बस
इतना-सा ही है संसार।

फिर मैं निकल गई शाखों पर
हरी-भरी थीं जो सुकुमार
तब मैं यही समझती थी बस
इतना-सा ही है संसार।

आखिर जब मैं आसमान में
उड़ी दूर तक पंख पसार
तभी समझ में मेरी आया
बहुत बड़ा है यह संसार।

- निरंकार देव 'सेवक'

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