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काव्य
जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।Article Under This Catagory
सुन के ऐसी ही सी एक बात - शमशेर बहादुर सिंह |
[हिन्दी साहित्यि हों में गुटबन्दी के एक घृणित रूप की प्रतिक्रिया] |
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मैं हार गया हूं - भगवतीचरण वर्मा |
निःसीम नापने चले, मुबारक हो तुम को; |
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जूझना बुज़दिली से बेहतर है - विजय कुमार सिंघल |
जूझना बुज़दिली से बेहतर है |
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लोक-नीति पर रहीम के दस दोहे - रहीम |
रहीम के दोहे--सरलार्थ सहित |
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कुछ हाइकु - डॉ विद्या विंदु सिंह |
बुलाओ मुझे |
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बेरोज़गार मित्र का जवाब - शैल चतुर्वेदी | Shail Chaturwedi |
हमनें एक बेरोज़गार मित्र को पकड़ा |
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मैं पावन हूँ अपने आंसू के नीर से | गीत - गोपाल सिंह नेपाली | Gopal Singh Nepali |
तुम पार तरो गंगा-यमुना के तीर से |
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राम, तुम्हारा नाम - रामधारी सिंह दिनकर | Ramdhari Singh Dinkar |
राम, तुम्हारा नाम कण्ठ में रहे, |
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'स-सार' संसार - अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' | Ayodhya Singh Upadhyaya Hariaudh |
है असार संसार नहीं। |
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दायरा | हास्य कविता - नेहा शर्मा |
एक बुढ्ढे को बुढ़ापे में इश्क का बुखार चढ़ गया |
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पैरोडीदास का गीत - पैरोडीदास |
सरल है बहुत चांद-सा मुख छिपाना, |
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पीड़ा का वरदान - विष्णुदत्त 'विकल |
क्यों जग के वाक्-प्रहारों से हम तज दें अपनी राह प्रिये! |
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क्या होगा | गीत - कुसुम सिनहा |
सपनों ने सन्यास लिया तो |
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इस जग में - शम्भुनाथ शेष |
इस जग में भेजा था तूने |
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सुबह हो रही है - शील |
सुबह हो रही है रहेगी न रात, |
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मैं हर मन्दिर के पट पर - सुमित्रा सिनहा |
मैं हर मन्दिर के पट पर अर्घ्य चढ़ाती हूँ, |
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इसलिए तारीख ने... | ग़ज़ल - भवानी शंकर |
इसलिए तारीख ने हमको कभी चाहा नहीं, |
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जो किसी का बुरा... - शिव ओम अंबर |
जो किसी का बुरा नहीं होता |
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छाया के नहीं मिलते... - ज़फ़रुद्दीन ज़फ़र |
छाया के नहीं मिलते दो पल भी आजकल, |
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रात दिन यूं चला - सूर्यभानु गुप्त |
रात दिन यूं चला सिलसिला झूठ का, |
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