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कथा-कहानी
अंतरजाल पर हिंदी कहानियां व हिंदी साहित्य निशुल्क पढ़ें। कथा-कहानी के अंतर्गत यहां आप हिंदी कहानियां, कथाएं, लोक-कथाएं व लघु-कथाएं पढ़ पाएंगे। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद,रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मा व लियो टोल्स्टोय की कहानियां।Article Under This Catagory
फ्रॉक - कीर्ति चौधरी |
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आँखें खुलीं - कमला देवी चौधरी |
हिन्दू-समाज। एक भाईं, तीन बहनें। हर एक का दहेज पाँच हजार। पूरे पन्द्रह हजार! सुधा बड़ी है तो क्या, कन्या जो ठहरी! मनोहर पुत्र है--दस हज़ार की हुंडी। फिर मनोहर का लाड-प्यार क्यों न हो? और चुन्नी के लिए? उपेक्षा। |
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देश की वेदी पर - डॉ॰ धनीराम प्रेम | ब्रिटेन |
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दो विद्वान - खलील जिब्रान |
एक बार एक प्राचीन नगर में दो विद्वान रहते थे। दोनों बड़े विद्वान थे लेकिन दोनों के बीच बड़ा मनमुटाव था। वे एक-दूसरे के ज्ञान को कमतर आँकने में लगे रहते। |
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छाया का भय - भारत-दर्शन संकलन |
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अपनों के लिए - रोहित कुमार 'हैप्पी' |
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खुले द्वार - श्यामू सन्यासी |
मिट्टी के ढेर पर ठीकरी-ठीकरी हंडिया आ बिखरी। |
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बातचीत - भारत-दर्शन संकलन |
साधु—'तुम आज भिक्षा के लिए नहीं गई?’ |
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सॉरी - महेश दर्पण |
सड़क पर दो लोग आमने-सामने से आ रहे थे, लेकिन अपने आप में इस कदर मशगूल कि किसी दूसरे के बारे में सोचने की तो जैसे फुरसत ही न हो। एक अपने मोबाइल पर आया कोई एस.एम.एस. देखने में बिजी था तो दूसरा यह जानने की कोशिश में था कि आखिर अभी-अभी आया मिसकॉल है किसका। वे दोनों इस कदर करीब आ चुके थे कि किसी भी वक्त टकरा सकते थे। ठीक इसी वक्त पास से गुजरते एक बच्चे ने उन्हें देख लिया। उसके मुँह से निकल पड़ा, "अंकल, सामने तो देखिए!" |
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प्राण संवाद - भारत-दर्शन संकलन |
सब इन्द्रियों ने श्रेष्ठता के लिए "मैं बड़ा हूँ, मैं बड़ा हूँ" कह- कर आपस में विवाद किया। उन इन्द्रियों ने पिता प्रजापति के पास जाकर पूछा "भगवन्, हममें कौन श्रेष्ठ है?" प्रजापति ने उत्तर दिया,"जिसके निकल जाने से शरीर सबसे अधिक दुर्दशा को पाता है, तुममें वही श्रेष्ठ है।" |
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महादान | कहानी - यशपाल | Yashpal |
सेठ परसादीलाल टल्लीमल की कोठी पर जूट का काम होता था। लड़ाई शुरू होने पर जापान और जर्मनी की खरीद बंद हो गई। जहाजों को दुश्मन की पनडुब्बियों का भय था; अमेरिका भी माल न जा पाता। |
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