देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 

होली - मैथिलीशरण गुप्त

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt

जो कुछ होनी थी, सब होली!
          धूल उड़ी या रंग उड़ा है,
हाथ रही अब कोरी झोली।
          आँखों में सरसों फूली है,
सजी टेसुओं की है टोली।
          पीली पड़ी अपत, भारत-भू,
फिर भी नहीं तनिक तू डोली !

- मैथिलीशरण गुप्त

[साभार: स्वदेश-संगीत, साहित्य-सदन, चिरगाँव, झाँसी]

Back
 
Post Comment
 
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश