अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 

रात भर का वह गहरा अँधेरा

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 शारदा मोंगा | न्यूजीलैंड

रात भर का वह गहरा अँधेरा,
गहन अवसाद था बहुतेरा,

रजनी चुपचाप अश्रु बहाती,
तुहिन कणों से धरा नहलाती,

अरुणिमा पूरब में छटी जब,
रात की गंभीरता घटी तब,

नवल अरुण की लालिमा ले,
गगन मुख मंडल मुस्काया,

नव दुल्हन सी प्रकृति सजी,
दिश दिशा अनुरंजित हो उठी,

नीडों में सिहरन लहरी,
खग चिरप चिरप चहचहाये,

मलयज के झोंकों से किसलय,
का आँचल डोला लहराया,

मदमत्त भ्रमर मधुर गुंजायें,
कोयलिया स्वर्गीय गीत गाए,

विहगों के दुदुम्भी नाद से,
वन उपवन निनादित सुगंधित,

स्वर्णिम रजत सलिल में उतर ,
सद्य स्नाता चंचल किरणें,

नृत्यांगना सी, चपल उर्मियाँ
ठुमुक ठुमुक कर नाच उठीं।

- शारदा मोंगा

 

Back
 
Post Comment
 
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश