अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 

डर

 (कथा-कहानी) 
 
रचनाकार:

 स्वामी विवेकानंद

एक बार स्वामी जी दुर्गा जी के मंदिर से निकल रहे थे कि तभी बहुत-से बंदरों ने उन्हें घेर लिया। वे उनके नज़दीक आने लगे और डराने लगे। स्वामी जी भयभीत हो गए और खुद को बचाने के लिए दौड़ कर भागने लगे, पर बन्दर तो मानो पीछे ही पड़ गए और वे उन्हें दौडाने लगे।

पास खड़े एक वृद्ध सन्यासी ये सब देख रहे थे। उन्होंने स्वामी जी को रोका और बोले, "रुको ! उनका सामना करो !"

स्वामी जी तुरन्त पलटे और बंदरों के तरफ बढ़ने लगे। ऐसा करते ही सभी बंदर भाग गए। इस घटना से स्वामी जी को एक गंभीर सीख मिली और कई सालों बाद उन्होंने एक संबोधन में कहा, "यदि तुम कभी किसी चीज से भयभीत हो तो उससे भागो मत, पलटो और सामना करो।"

[ भारत-दर्शन संकलन]

 

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