जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
 

जलाओ दीप जी भर कर

 (बाल-साहित्य ) 
 
रचनाकार:

 आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)

जलाओ दीप जी भर कर,
दिवाली आज आई है।
नया उत्साह लाई है,
नया विश्वास लाई है।

इसी दिन राम आये थे,
अयोध्या मुस्कुराई थी।
हुआ था राम का स्वागत,
खुशी चहुँ ओर छाई थी।

मना था जश्न घर-घर में,
उदासी खिलखिलाई थी।
अँधेरा चौदह बर्षों का,
उजाला ले के आई थी।

इसी दिन श्याम सुन्दर ने,
गोवर्धन को उठाया था।
अहम् इन्दर का तोड़ा था,
वृंदावन को बचाया था।

हिरण्य कश्यप को मारा था,
श्री नरसिंह रूप धारी ने।
नरकासुर को भी मारा था,
सुदर्शन चक्र धारी ने।

हुआ था आगमन माँ का,
समुन्दर का हुआ मंथन।
धन-धान्य की देवी,माँ लक्ष्मी,
का होता आज है पूजन।

जलाते आज हम दीपक,
अँधेरा दूर करने को।
खुशी जीवन में लाने को,
उजाला मन में भरने को।

मगर मन में उदासी है,
अँधेरा हर तरफ कैसे।
उजाला चन्द लोगों तक,
सिमट कर रह गया कैसे।

करें हम आज कुछ ऐसा,
कि मन का दीप जल जाये।
अँधेरा रह नहीं पाये,
उजाला हर तरफ छाये।

उजाला मन में हो जाये,
तो दुनियाँ ही निराली है,
सभी के द्वार जगमग हों,
तभी समझो दिवाली है।


- आनन्द विश्वास

 

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