देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 

रैदास के पद

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 रैदास | Ravidas

अब कैसे छूटे राम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी॥
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा॥
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती॥
प्रभु जी, तुम मोती, हम धागा जैसे सोनहिं मिलत सोहागा॥
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै 'रैदासा'॥

Back
More To Read Under This
रैदास के पद -2
Posted By Surender Pal Bhatia Nastic(SPBN)   on
शब्दस ऑफ़ जगत गुरु रविदास जी
Posted By vikram sahu   on
ऐसे महान भक्त भारतीय साहित्य में अनुपम हैं. .......... बारम्बार नमन हमारा .................
 
Post Comment
 
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश