अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
 

प्राण वन्देमातरम्

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 भारत-दर्शन संकलन | Collections

हम भारतीयों का सदा है, प्राण वन्देमातरम्।
हम भूल सकते है नही शुभ तान वन्देमातरम्॥

देश के ही अन्नजल से बन सका यह खून है।
नाड़ियों में हो रहा संचार वन्देमातरम्॥

स्वाधीनता के मंत्र का है सार वन्देमातरम्।
हर रोम से हर बार हो उबार वन्देमातरम्॥

घूमती तलवार हो सरपर मेरे परवा नही।
दुश्मनो देखो मेरी ललकार वन्देमातरम्॥

धार खूनी खच्चरों की बोथरी हो जायगी।
जब करोड़ों की पड़े झंकार वन्देमातरम्॥

टांग दो सूली पै मुझको खाल मेरी खींच लो।
दम निकलते तक सुनो हुंकार वन्देमातरम्॥

देश से हम को निकालो भेज दो यमलोक को।
जीत ले संसार को गुंजार वन्देमातरम्॥

चौंकते हो क्यों भला तुम मंत्र वन्देमातरम्।
चीर कर देखो कलेजा तंत्र वन्देमातरम्॥

मृत्युशथ्या पर मुझे उल्लास होगा बस तभी।
प्राण यदि छूटे हिलाते तार वन्देमातरम्॥

                                 - अज्ञात

[भारत-दर्शन]

 

Back
 
Post Comment
 
Type a word in English and press SPACE to transliterate.
Press CTRL+G to switch between English and the Hindi language.
 

सब्स्क्रिप्शन

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें

 

 

सम्पर्क करें

आपका नाम
ई-मेल
संदेश