प्रत्येक नगर प्रत्येक मोहल्ले में और प्रत्येक गाँव में एक पुस्तकालय होने की आवश्यकता है। - (राजा) कीर्त्यानंद सिंह।
 

ईश्वर का चेहरा

 (कथा-कहानी) 
 
रचनाकार:

 विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar

प्रभा जानती है कि धरती पर उसकी छुट्टी समाप्त हो गयी है। उसे दुख नहीं है। वह तो चाहती है कि जल्दी से जल्दी अपने असली घर जाए। उसी के वार्ड में एक मुस्लिम खातून भी उसी रोग से पीड़ित है। न जाने क्यों वह अक्सर प्रभा के पास आ बैठती है। सुख-दुख की बातें करती है। नई-नई पौष्टिक दवाइयां, फल तथा अण्डे आदि खाने की सलाह देती है। प्रभा सुनती है, मुस्करा देती है। सबीना बार-बार जोर देकर कहती है, ''ना बहन! मैंने सुना है यह दवा खाने से बहुत फायदा होता है और अमुक चीज खाने से तो तुम्हारे से खराब हालत वाले मरीज भी खुदा के घर से लौट आए हैं।''

''सच ?''

''हां बहन, आजमायी हुई चीजें हैं।''

''तुमने खुद आजमाकर देखी है ?''

एकाएक सकपका गयी सबीना। चेहरा मुरझा गया। एक क्षण देखती रही शून्य में। फिर बोली, ''बहन! हम उन चीजों का इस्तेमाल कैसे कर सकेंगे। बहुत महंगी हैं और हम ठहरे झोंपड़पट्टी के रहने वाले। तुम्हें कितने लोग घेरे रहते हैं। तुम्हारे उनको तो मैंने कई बार रोते देखा है। तुम ये महंगी चीजें खरीद सकती हो। शायद तुम्हारे बच्चो के भाग से अल्ला-ताला तुम पर करम फरमा दें।''

प्रभा सुनती रही, एकटक सबीना के चेहरे पर दृष्टि गड़ाए रही। उसे बराबर लगता रहा कि ईश्वर का अगर कोई चेहरा होगा तो सबीना के जैसा ही होगा।

- विष्णु प्रभाकर

[कौन जीता, कौन हारा - लघु-कथा संग्रह से]

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