देशभाषा की उन्नति से ही देशोन्नति होती है। - सुधाकर द्विवेदी।
 

रैदास की साखियाँ

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 रैदास | Ravidas

हरि सा हीरा छाड़ि कै, करै आन की आस ।
ते नर जमपुर जाहिँगे, सत भाषै रैदास ।। १ ।।

अंतरगति रार्चैँ नहीं, बाहर कथैं उदास ।
ते नर जम पुर जाहिँगे, सत भाषै रैदास ।। २ ।।

रैदास कहें जाके ह्रदै, रहै रैन दिन राम ।
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न ब्यापै काम ।। ३

जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड मेँ बास ।
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास ।। ४

रैदास तूँ कावँच फली, तुझे न छीपै कोइ ।
तैं निज नावँ न जानिया, भला कहाँ ते होइ ।। ५ ।।

रैदास राति न सोइये, दिवस न करिये स्वाद ।
अह-निसि हरिजी सुमिरिये, छाड़ि सकल प्रतिवाद ।। ६ ।।

- रैदास

[रैदासजी की बाणी]

 

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