यदि पक्षपात की दृष्टि से न देखा जाये तो उर्दू भी हिंदी का ही एक रूप है। - शिवनंदन सहाय।
 

दुष्यंत कुमार की ग़ज़लें

 (काव्य) 
 
रचनाकार:

 दुष्यंत कुमार | Dushyant Kumar

दुष्यंत कुमार की ग़ज़लें - इस पृष्ठ पर दुष्यंत कुमार की ग़ज़लें संकलित की गई हैं। हमारा प्रयास है कि दुष्यंत कुमार की सभी उपलब्ध ग़ज़लें यहाँ सम्मिलित हों।

 

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हो गई है पीर पर्वत-सी | दुष्यंत कुमार इस नदी की धार में | दुष्यंत कुमार मैं जिसे ओढ़ता -बिछाता हूँ | दुष्यंत कुमार आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख | ग़ज़ल ये सारा जिस्म झुककर तुम्हारे पाँव के नीचे---- ये जो शहतीर है | ग़ज़ल कैसे मंज़र सामने आने लगे हैं कहाँ तो तय था चराग़ाँ
 
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